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बुधवार, 8 दिसंबर 2021

जिवन संगिनी - धर्म पत्नी की विदाई

  *कृपया बिना रोए पढ़ें।  यह मेसेज मेरे दिल को छू गया है*

जिवन संगिनी - धर्म पत्नी की विदाई 

अगर पत्नी है तो दुनिया में सब कुछ है।  राजा की तरह जीने और आज दुनिया में अपना सिर ऊंचा रखने के लिए अपनी पत्नी का शुक्रिया।  आपकी सुविधा असुविधा आपके बिना कारण के क्रोध को संभालती है।  तुम्हारे सुख से सुखी है और तुम्हारे दुःख से दुःखी है।  आप रविवार को देर से बिस्तर पर रहते हैं लेकिन इसका कोई रविवार या त्योहार नहीं होता है।  चाय लाओ, पानी लाओ, खाना लाओ।  ये ऐसा है और वो ऐसा है।  कब अक्कल आएगी तुम्हे? ऐसे ताने मारते हो।  उसके पास बुद्धि है और केवल उसी के कारण तो आप जीवित है।  वरना दुनिया में आपको कोई भी  नहीं पूछेगा।  अब जरा इस स्थिति की सिर्फ कल्पना करें:

एक दिन *पत्नी* अचानक  रात को गुजर जाती है !

घर में रोने की आवाज आ रही है।  पत्नी का *अंतिम दर्शन* चल रहा था।

उस वक्त पत्नी की आत्मा जाते जाते जो कह रही है उसका वर्णन:

में अभी जा रही हूँ अब फिर कभी नहीं मिलेंगे

तो मैं जा रही हूँ।

जिस दिन शादी के फेरे लिए थे उस वक्त साथ साथ जियेंगे ऐसा वचन दिया था पर इस   अचानक अकेले जाना पड़ेगा ये मुज को पता नहीं था।

मुझे जाने दो।

अपने आंगन में अपना शरीर छोड़ कर जा रही हूँ।  

बहुत दर्द हो रहा है मुझे।

लेकिन मैं मजबूर हूँ अब मैं जा रही हूँ। मेरा मन नही मान रहा पर अब में कुछ नहीं कर सकती।

मुझे जाने दो

बेटा और बहु रो रहे है देखो। 

मैं ऐसा नहीं देख सकती और उनको दिलासा भी नही दे सकती हूँ। पोता  बा  बा बा कर रहा है उसे शांत करो, बिल्कुल ध्यान नही दे रहे है।  हाँ और आप भी मन मजबूत रखना और बिल्कुल ढीले न हों।

मुझे जाने दो

अभी बेटी ससुराल से आएगी और मेरा मृत  शरीर देखकर बहुत रोएगी तब उसे संभालना और शांत करना। और आपभी  बिल्कुल नही रोना।

मुझे जाने दो

जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। जो भी इस दुनिया में आया है वो यहाँ से ऊपर गया है। धीरे धीरे मुझे भूल जाना, मुझे बहुत याद नही करना। और इस जीवन में फिर से काम मे डूब जाना। अब मेरे बिना जीवन जीने की आदत  जल्दी से डाल देना।

मुझे जाने दो

आप ने इस जीवन में मेरा कहा कभी नही माना है। अब जिद्द छोड़कर वयवहार में विनम्र रहना। आपको अकेला छोड़ कर जाते मुझे बहुत चिंता हो रही है। लेकिन मैं मजबूर हूं।

मुझे जाने दो

आपको BP और डायबिटीज है। गलती से भी मिठा नही कहना अन्यथा परेशानी होगी।  

सुबह उठते ही तो दवा लेना न भूलना। चाय अगर आपको देर से मिलती है तो बहु पर गुस्सा न करना। अब में नहीं हूं यह समझ कर जीना सीख लेना।

मुझे जाने दो

बेटा और बहू कुछ बोले तो

चुपचाप सब सुन लेना। कभी गुस्सा नही करना। हमेशा मुस्कुराते रहना कभी उदास नही होना। 

मुझे जाने दो

अपने बेटे के बेटे के साथ खेलना। अपने दोस्तों  के साथ समय बिताना।  अब थोड़ा धार्मिक जीवन जिएं ताकि जीवन को संयमित किया जा सके।  अगर मेरी याद आये  चुपचाप रो लेना लेकिन कभी कमजोर नही होना।

मुझे जाने दो

मेरा रूमाल कहां है, मेरी चाबी कहां है अब ऐसे चिल्लाना नही। सब कुछ दचयन से रखने और याद रखने की आदत करना। सुबह और शाम नियमित रूप से दवा ले लेना। अगर बहु भूल जाय तो सामने से याद कर लेना। जो भी खाने को मिले प्यार से खा लेना और गुस्सा नही करना।

मेरी अनुपस्थिति खलेगी पर कमजोर नहीं होना।

मुझे जाने दो

बुढ़ापे की छड़ी भूलना नही और  धीरे धीरे से चलना।

यदि बीमार हो गए और बिस्तर में लेट गए तो किसी को भी सेवा  करना पसंद नहीं आएगा।

मुझे जाने दो

शाम को बिस्तर पर जाने से पहले एक लोटा पानी माँग लेना।  प्यास लगे तभी पानी पी लेना।

अगर आपको रात को उठना पड़े तो अंधेरे में कुछ लगे नही उसका ध्यान रखना।

मुझे जाने दो

शादी के बाद हम बहुत प्यार से साथ रहे। परिवार में फूल जैसे बच्चे दिए। अब उस फूलों की सुगंध मुजे नही मिलेगी।

मुझे जाने दो

उठो सुबह हो गई अब ऐसा कोई नहीं कहेगा। अब अपने आप उठने की आदत डाल देना किसी की प्रतीक्षा नही करना।

मुझे जाने दो

और हाँ .... एक बात तुमसे छिपाई है मुझे माफ कर देना।

आपको बिना बताए बाजू की पोस्ट ऑफिस में बचत खाता खुलवाकर 14 लाख रुपये जमा किये है। मेरी दादी ने सिखाया था। एक एक रुपया जमा कर के कोने में रख दिया। इसमें से पाँच पाँच लाख बहु और बेटी को देना और अपने खाते में चार लाख रखना आपके लिए।

मुझे जाने दो

भगवान की भक्ति और पूजा करना भूलना नही। अब  फिर कभी नहीं मिलेंगे !!

मुझसे कोईभी गलती हुई हो तो मुजे माफ कर देना।

 *मुझे जाने दो*

 *मुझे जाने दो*

        🌹🌹 *रचना* 🌹🌹

 *संजीव कृष्ण श्याम सखा*

         *संस्थापक*

*श्री बृज रस धारा धर्मार्थ सेवा संस्थान*श्री धाम वृंदावन*

   *9997807846* *8218507043*

मंगलवार, 10 अगस्त 2021

पूजापाठ से जुड़ी हुईं महत्वपूर्ण बातें

 *पूजापाठ से जुड़ी हुईं महत्वपूर्ण बातें*

★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।

★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। 

★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें। 

★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

★ जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए। 

★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

★ संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।

★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं। 

★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है, 

★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं। 

★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

★  देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

★  किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

★  एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

★ बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

★ शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

★ शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुमकुम नहीं चढ़ती।

★ शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी  को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

★ अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावे।

★ नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

★ विष्णु भगवान को चावल गणेश जी  को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण  को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।

★ पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।

★ किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें। 

★पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें।

★ सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।

★ गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं।

★ पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।

★ दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।

★ सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।

★ पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।

★ पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।

★ घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें। 

★ गणेशजी को तुलसी का पत्र छोड़कर सब पत्र प्रिय हैं।  भैरव की पूजा में तुलसी स्वीकार्य नहीं है। 

★ कुंद का पुष्प शिव को माघ महीने को छोड़कर निषेध है। 

★ बिना स्नान किये जो तुलसी पत्र जो तोड़ता है उसे देवता स्वीकार नहीं करते।

★ रविवार को दूर्वा नहीं तोड़नी चाहिए। 

★ केतकी पुष्प शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए। 

★ केतकी पुष्प से कार्तिक माह में विष्णु की पूजा अवश्य करें। 

★ देवताओं के सामने प्रज्जवलित दीप को बुझाना नहीं चाहिए। 

★ शालिग्राम का आवाह्न तथा विसर्जन नहीं होता। 

★ जो मूर्ति स्थापित हो उसमें आवाहन और विसर्जन नहीं होता। 

★ तुलसीपत्र को मध्यान्ह के बाद ग्रहण न करें। 

★ पूजा करते समय यदि गुरुदेव,ज्येष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आ जाए तो उनको उठ कर प्रणाम कर उनकी आज्ञा से शेष कर्म को समाप्त करें। 

★ मिट्टी की मूर्ति का आवाहन और विसर्जन होता है और अंत में शास्त्रीयविधि से गंगा प्रवाह भी किया जाता है। 

★ कमल को पांच रात,बिल्वपत्र को दस रात और तुलसी को ग्यारह रात बाद शुद्ध करके पूजन के कार्य में लिया जा सकता है।

 ★ पंचामृत में यदि सब वस्तु प्राप्त न हो सके तो केवल दुग्ध से स्नान कराने मात्र से पंचामृतजन्य फल जाता है। 

★ शालिग्राम पर अक्षत नहीं चढ़ता। लाल रंग मिश्रित चावल चढ़ाया जा सकता है। 

★ हाथ में धारण किये पुष्प, तांबे के पात्र में चन्दन और चर्म पात्र में गंगाजल अपवित्र हो जाते हैं। 

★ पिघला हुआ घी और पतला चन्दन नहीं चढ़ाना चाहिए। 

★ प्रतिदिन की पूजा में सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ाएं। 

★ आसन, शयन, दान, भोजन, वस्त्र संग्रह, विवाद और विवाह के समयों पर छींक शुभ मानी गई है।  

★ जो मलिन वस्त्र पहनकर, मूषक आदि के काटे वस्त्र, केशादि बाल कर्तन युक्त और मुख दुर्गन्ध युक्त हो,जाप नही करना चाहिए।

★ मिट्टी, गोबर को निशा में और प्रदोषकाल में गोमूत्र को ग्रहण न करें। 

★ मूर्ति स्नान में मूर्ति को अंगूठे से न रगड़ें।

★ पीपल को नित्य नमस्कार पूर्वाह्न के पश्चात् दोपहर में ही करना चाहिए। इसके बाद न करें।  

★ जहां अपूज्यों की पूजा होती है और विद्वानों का अनादर होता है, उस स्थान पर दुर्भिक्ष, मरण और भय उत्पन्न होता है। 

★ पौष मास की शुक्ल दशमी तिथि, चैत्र की शुक्ल पंचमी और श्रावण की पूर्णिमा तिथि को लक्ष्मी प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का पूजन करें। 

★ कृष्णपक्ष में, रिक्तिका तिथि में, श्रवणादी नक्षत्र में लक्ष्मी की पूजा न करें। 

★ अपराह्नकाल में, रात्रि में, कृष्ण पक्ष में, द्वादशी तिथि में और अष्टमी को लक्ष्मी का पूजन प्रारम्भ न करें। 

★ मंडप के नव भाग होते हैं, वे सब बराबर-बराबर के होते हैं अर्थात् मंडप सब तरफ से चतुरासन होता है, अर्थात् टेढ़ा नहीं होता। जिस कुंड की श्रृंगार द्वारा रचना नहीं होती वह यजमान का नाश करता है। 

★ पूजा-पाठ करते समय हो जाए कुछ गलती तो अंत में जरूर बोलें ये एक मंत्र

*आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।*

*पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥*

*मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।*

*यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥*

आप सभी को निवेदन है अगर हो सके तो और लोगों को भी आप इन महत्वपूर्ण बातों से अवगत करा सकते है                   🙏 जय श्रीमन्नाराय

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

मत-त्रय-समन्वय

 मत-त्रय-समन्वय

(शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और मध्वाचार्य)~~~~~~~~~~

ईश और आत्मा एक ही है.. दोनों चैतन्य(awareness)हैं-शंकर..

ईश और आत्मा में फल और स्वाद की तरह एक्य है तथा दोनों अग्नि और स्फुल्लिंग की तरह हैं तथा दोनों का गुणात्मक अद्वैत तथा मात्रात्मक द्वैत है-रामानुज..

ईश और आत्मा दोनों भिन्न हैं तथा उनमें सेव्य और सेवक के भाव हैं-मध्व..

वेदानुसार, ईश और आत्मा शरीर में सह-अस्तित्व में हैं(द्वा सुपर्णासयुजासखाया..)

गीतानुसार, ईश आत्मायुक्त शरीर में प्रवेश करते हैं(मानुषींतनुमाश्रितम्..)

मानव शरीर में आत्मा ईश से, धात्विक तार में विद्युद्धारा की तरह मिल जाते हैं..

आत्मा(पराप्रकृति) और शरीर(अपराप्रकृति) में प्रकृति के उभयावयव हैं..स्वामी का घर सेवक द्वारा उपयुज्य है..

विद्युत्मय धात्विक तार ही विद्युत है(अद्वैत)..

विद्युत् शक्ति का बड़ा भाग तथा तार छोटा धात्विक भाग है.. ईश आत्मा को आँख की तरह उपयोग करता है(विशिष्टाद्वैत)..

विद्युत एलेक्ट्रोन की धारा तथा तार स्फटिकों की श्रृंखला है और दोनों भिन्न हैं(द्वैतवाद)..

'त्वमेवाहम्'-शंकर का उद्घोष है..

'तवैवाहम्'-रामानुज का उद्घोष है..

'तस्यैवाहम्'-मध्व का उद्घोष है..

विद्युत्धारा और धात्विक तार की उपमा यहाँ सर्वोत्कृष्ट है..

यदि विद्युत् शक्तिगृह में हो और घर में अनेक विद्युत -रहित तार हो तो अद्वैत के अनुसार विद्युत और तार(ऊर्जा और पदार्थ) परस्पर परिवर्तनीय होने के कारण एक ही है.. यदि यह सत्य है तो विद्युतरहित तार में भी झटका देना चाहिए.. विशिष्टाद्वैत के अनुसार, विद्युत और तार अवियोज्य है-यह भी असहज प्रतीत होता है क्योंकि दोनों ही अलग और दूर हैं.. द्वैत के अनुसार विद्युत शक्तिगृह मेहो तथा धात्विक तार यहाँ घर में हो तो दोनों ही भिन्न हैं..

सर्वव्यापी विद्युत और विद्युतीकृत तार व्यावहारिक अर्थ में एकरूप हैं(शंकर)..अ-पार्थक्य के कारण वे एक ही माने जाने योग्य हैं(रामानुज)..

वेद के अनुसार ईश(चैतन्य) श्रृष्टि में प्रवेश किया(तदेवानुप्राविशत्..), किन्तु चैतन्य के सर्वत्र विद्यमान नहीं होने से ईश का प्रवेश आंशिक है.. यदि कोई घर प्रवेश करे तो वह किसी एक भाग में ही उपलभ्य है.. अतस्तु कुछ खास भक्त-जनों के अतिरिक्त,हर जीवात्मा चेतन नहीं है..

ईश चैतन्य के अतिरिक्त 'विशिष्ट ज्ञान से भी चिह्नित है जो सम्बन्धों से सम्बन्धित कहा जा सकता है..

अब समझना है कि तीनों मत एक ही स्थिति के तीन दृष्टिकोण हैं..

विद्युत-प्रबाहित तार को हर व्यवहार में तार कहना क्योंकि छूने पर आघात देता है(शंकर)..

भिन्न होते हुए भी धारा-प्रबाह की दशा में अपृथक नहीं हो सकते(रामानुज)..

शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी से हम एलेक्ट्रोन-धारा(विद्युत) को स्फटिक-श्रृंखला(तार) से भिन्न-भिन्न देख सकते हैं(मध्व)..

इस प्रकार तीनों मतों का पारस्परिक सम्बन्ध जो एक दूसरेके विरुद्ध नहीं होते..

पर यदि शक्ति-गृह की शक्ति तथा विद्युतरहित तार के मध्य ये त्रिमत ले आना हास्यास्पद होगा..हाँ, विद्युत के प्रबाह-योग से घर पर रखे तार में तो विजली आ ही सकती है..

ईश और आत्मा दोनों में चेतनता(awareness) है..शंकर कहते हैं-आत्मा ही ईश है.. रामानुज कहते हैं-ईश से आत्मा का पृथकत्व असम्भव है.. मध्व कहतेहैं-गुणात्मक अन्तर से ईश और आत्मा भिन्न हैं..

(भले विद्युत शक्तिगृह में हो,आपके घर के रखे अच्छे तार उच्चात्मा के तथा बोरे बाँधनेवाले तार हीनात्मा के प्रतीक हैं..

तीनों मतों में ईश 'चैतन्य(awareness) है जो ईश और आत्मा में है.. आत्मा ही ईश है(शंकर)..आत्मा से ईश का विलगाव असम्भव है(रामानुज)..भिन्न गुणों वाले होने के कारण ईश और आत्मा पृथक हैं(मध्व)..

मूलाधार यह है कि ईश चैतन्य है, चयनित आत्माओं के लिए.. श्रृष्टि में अक्रिय वस्तुओं में चेतनता नहीं है.. योजक 'ईश' को चैतन्य-तल पर युज्य आत्मा कह सकते हैं जैसे सेववाले को ऐसेव! कहते हैं..

ईश अकल्पनीय है, चेतनता कल्पनीय है.. गीतानुसार, ईश अज्ञेयहै(मां तु वेद न..)वेदानुसार भी अपरिमेय है(नैषा तर्केण..) ईश स्वशक्ति से सोच सकता है तथा उसे चेतनता की आवश्यकता नहीं है.. वह स्वयं चेतनता है..

शंकर कोपूर्वमीमांसकों, नास्तिकों, बुद्धवादियों से कहना पड़ा-आत्मा ईश है.. आत्मा है तो ईश अवश्य है.. परिणाम हुआ कि सभी नास्तिक स्वयं को अस्तित्व-मय मानकर ईश समझने लगे.. इससे नास्तिकों को आस्तिक बनने में सहायता मिली..दूसरे स्तर पर उन्हें अपना 'आत्मा' होना सिखाया गया.. शंकर नेकहा-'ईश्वरानुग्रहादेव..'(ईश बनने हेतु ईशकृपा चाहिए ही..)

मानवान्तरण के अर्थ में शंकर ने आत्मा को ईश कहा..किन्तु विरूपित अर्थ में भी सत्य यह है कि 'प्रत्येक आत्मा को ईश होने का अवसर प्राप्य है'..मानवावतार मात्र ईशेच्छा से सम्भावित होने के कारण 'भक्ति' से सम्भव नहीं है.. भक्ति पर प्रयास अवश्य हो..

रामानुज के समय भक्त-जन मानवावतार हेतु ईशोपासना में लगे थे.. उसने कहा-आप ईश के ही अंश हैं, किन्तु इस सान्त्वना से काम न चला.. अकल्पनीय ईश का कोई ज्ञात भाग(आत्मा) कैसे होगा!..रामानुज ने धीरे धीरे उन्हें शान्त किया कि ईश और आत्मा दोनों चैतन्यमय हैं..

और फिर-मध्व ने बाद में उन्हें ,समझाया कि ईश और आत्मा में द्वित्व है.. आत्मा ज्योंही ईशत्व की कामना करता है, वह भाग्य से विफल हो जाता है.. अतः अपनी ओर से ईच्छा न रखें..

विज्ञान के अनुसार-ईश्वर अकल्प्य है तथा आत्मा कल्प्य स्नायविक ऊर्जा और स।जन का भाग..आकांक्षा-रहित होकर आत्मा का 'ईश' होना सबके हेतु एक मुक्त अवसर है.. अतः, तीनों मत त्रिकालसत्य है, अन्तर मात्र प्रापक की आध्यात्मिक अवस्था की है..

शंकराचार्य को शिव, रामानुजाचार्य को विष्णु तथा मध्वाचार्य को ब्रह्मा स्वरूप स्वीकार करना ही हमारी सहृदयता है..

गुरुवार, 7 जनवरी 2021

अपने प्रभु श्रीराम जी के मंदिर के लिए अंशदान अवश्य करें

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*अगले कुछ दिनों में कोई न कोई राम सेवक श्री रामजन्म भूमि समर्पण निधि संग्रह हेतु   आपकें दरवाजे तक ज़रूर आएगा,आपसे करबद्ध प्रार्थना कि दिल खोलकर इस परम धार्मिक कार्य में तन,मन,धन से स्वयम तो सहयोग करें ही साथ ही साथ अपने इष्ट मित्रों तथा सगे सम्बन्धियों को भी इस पुनीत कार्य हेतु प्रेरित करें!*

*हम सभी का ये परम सौभाग्य है कि हमे अपने आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवाम राम के मंदिर निर्माण हेतु अंशदान करने का अवसर मिला है इसलिए इसमें खूब बढ़ चढ़कर सहयोग कर पुण्यलाभ के भागी बनें!*

*हमारी कितनी पीढ़ियां जिसके लिए प्रतीक्षा कर कर के स्वर्गवासी हो गईं उनकी संतत होने के कारण हमारा ये कर्तब्य बनता है कि हम उनके भी हिस्से का अंशदान अपनी सामर्थ्य अनुसार करके उन्हें गौरवान्वित करें औऱ उनका आशीर्वाद प्राप्त करें! क्यूंकि ऐसा शुभ अवसर जीवन में दुबारा नहीं प्राप्त हो सकता हैl*


*अपने प्रभु श्रीराम जी के मंदिर के लिए अंशदान अवश्य करेंl*  

*जय श्री राम 

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020


*भाइयों इस पोस्ट को समय निकाल कर एक बार जरूर पढ़ें, ऐसी जानकारी  बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो  सके आपका आभार धन्यवाद होगा।*✍️

1-अष्टाध्यायी               पाणिनी

2-रामायण                    वाल्मीकि

3-महाभारत                  वेदव्यास

4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य

5-महाभाष्य                  पतंजलि

6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन

7-बुद्धचरित                  अश्वघोष

8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष

9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र

10- स्वप्नवासवदत्ता        भास

11-कामसूत्र                  वात्स्यायन

12-कुमारसंभवम्           कालिदास

13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  

14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास

15-मेघदूत                    कालिदास

16-रघुवंशम्                  कालिदास

17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास

18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि

19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त

20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक

21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट

22-वृहतसिंता               बरामिहिर

23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा

24-कथासरित्सागर        सोमदेव

25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु

26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त

27-रावणवध।              भटिट

28-किरातार्जुनीयम्       भारवि

29-दशकुमारचरितम्     दंडी

30-हर्षचरित                वाणभट्ट

31-कादंबरी                वाणभट्ट

32-वासवदत्ता             सुबंधु

33-नागानंद                हर्षवधन

34-रत्नावली               हर्षवर्धन

35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन

36-मालतीमाधव         भवभूति

37-पृथ्वीराज विजय     जयानक

38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर

39-काव्यमीमांसा         राजशेखर

40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त

41-शब्दानुशासन         राजभोज

42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र

43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष

44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण

45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र

46-गीतगोविन्द            जयदेव

47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई

48-राजतरंगिणी           कल्हण

49-रासमाला               सोमेश्वर

50-शिशुपाल वध          माघ

51-गौडवाहो                वाकपति

52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी

53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र

 

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

वेद-ज्ञान


 प्र.1-  वेद किसे कहते है ?

उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।

प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने दिया।

प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?

उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण   के लिए।

प्र.5-  वेद कितने है ?

उत्तर- चार ।                                                  

1-ऋग्वेद 

2-यजुर्वेद  

3-सामवेद

4-अथर्ववेद

प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।

        वेद          -     ब्राह्मण

1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय

2 - यजुर्वेद      -    शतपथ

3 - सामवेद     -    तांड्य

4 - अथर्ववेद   -   गोपथ

प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।

उत्तर -  चार।

      वेद                 -    उपवेद

    1- ऋग्वेद        -    आयुर्वेद

    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद

    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद

    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद

प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।

उत्तर -  छः ।

1 - शिक्षा

2 - कल्प

3 - निरूक्त

4 - व्याकरण

5 - छंद

6 - ज्योतिष

प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?

उत्तर- चार ऋषियों को।

         वेद           -      ऋषि

1- ऋग्वेद         -      अग्नि

2 - यजुर्वेद       -       वायु

3 - सामवेद      -      आदित्य

4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा

प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?

उत्तर- समाधि की अवस्था में।

प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?

उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।

प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?

उत्तर-   चार ।

        ऋषि        विषय

1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान

2-  यजुर्वेद    -    कर्म

3-  सामवे     -    उपासना

4-  अथर्ववेद -    विज्ञान

प्र.13-  वेदों में।

ऋग्वेद में।

1-  मंडल      -  10

2 - अष्टक     -   08

3 - सूक्त        -  1028

4 - अनुवाक  -   85 

5 - ऋचाएं     -  10589

यजुर्वेद में।

1- अध्याय    -  40

2- मंत्र           - 1975

सामवेद में।

1-  आरचिक   -  06

2 - अध्याय     -   06

3-  ऋचाएं       -  1875

अथर्ववेद में।

1- कांड      -    20

2- सूक्त      -   731

3 - मंत्र       -   5977

प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                   उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।

प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?

उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।

प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?

उत्तर-  नहीं।

प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

उत्तर-  ऋग्वेद।

प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 

प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?

उत्तर- 

1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।

2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।

3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।

4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।

5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।

6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।

प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?

उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।

प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?

उत्तर-  केवल ग्यारह।

प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?

उत्तर-  

01-ईश ( ईशावास्य )  

02-केन  

03-कठ  

04-प्रश्न  

05-मुंडक  

06-मांडू  

07-ऐतरेय  

08-तैत्तिरीय 

09-छांदोग्य 

10-वृहदारण्यक 

11-श्वेताश्वतर 

प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?

उत्तर- वेदों से।

प्र.24- चार वर्ण।

उत्तर- 

1- ब्राह्मण

2- क्षत्रिय

3- वैश्य

4- शूद्र

प्र.25- चार युग।

1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।

2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।

3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।

4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।

कलयुग के  4,976  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।

4,27024 वर्षों का भोग होना है। 

पंच महायज्ञ

       1- ब्रह्मयज्ञ   

       2- देवयज्ञ

       3- पितृयज्ञ

       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ

       5- अतिथियज्ञ

   

स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।

नरक  -  जहाँ दुःख है।.

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

 *ॐ*

प्रति वर्ष दशहरे के बाद ठीक 

21 दिन बाद ही दीपावली क्यों आती है ? 

क्या कभी आपने इस पर विचार किया है ? 

विश्वास न हो तो कैलेंडर देख लीजिएगा। 

रामायण में वाल्मिकी ऋषि ने लिखा है कि, 

प्रभु श्रीराम को अपनी  पूरी सेना को 

श्रीलंका से अयोध्या तक पैदल चलकर आने में 

21दिन इक्कीस दिन यानी 504 घंटे लगे!!

अब हम 504 घंटे को 24घंटे से भाग दें 

तो उत्तर 21 आता है 

यानी इक्कीस दिन !!! 

मुझे भी आश्चर्य हुआ । 

कुछ भी बताया है यह सोचकर कौतूहलवश गूगल मैप पर सर्च किया। 

उसमें दर्शाता है कि,

श्रीलंका से अयोध्या की पैदल दूरी 

3145 किलोमीटर और 

लगने वाला समय 504 घंटे।।। 

हैं न आश्चर्यजनक बात। 

वर्तमान समय में गूगल मैप को 

पूरी तरह विश्वनीय माना जाता है। 

लेकिन हम भारतीय लोग तो 

दशहरा और दीपावली त्रेतायुग से चली आ रही 

परंपरानुसार मनाते आ रहे हैं।

समय के इस गणित पर 

आपको विश्वास न हो रहा हो तो 

गूगल सर्च कर देख सकते हैं 

तथा औरों को भी दीजिए यह रोचक जानकारी।

और वाल्मिकी ऋषि ने तो 

रामायण की रचना श्रीराम के जन्म से पहले ही कर दी थी।!!!

 उनका भविष्यवाणी और आगे घटने वाली घटनाओं का वर्णन कितना सटीक था। अपनी सनातन हिन्दू संस्कृति कितनी महान है। हमें गर्व है ऐसी महान हिन्दू संस्कृति में जन्म लेने पर।

 *है न रोचक और आश्चर्य जनक*

            *वन्देमातरम ।जय श्री राम।।*

जिवन संगिनी - धर्म पत्नी की विदाई

  *कृपया बिना रोए पढ़ें।  यह मेसेज मेरे दिल को छू गया है* जिवन संगिनी - धर्म पत्नी की विदाई  अगर पत्नी है तो दुनिया में सब कुछ है।  राजा की ...